यह पुस्तक हिन्दी माध्यम से स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर पर भूगोल का अध्ययन-अध्यापन करने वाले सुधी पाठकों की भूगोल के दर्शन एवं विधितंत्र के विकास के इतिहास पर एक मानक सन्दर्भ ग्रंथ सम्बन्धी दीर्घकालिक मांग की आपूर्ति करेगी। पुस्तक में प्राचीन यूनानी युग के प्रारम्भ से बीसवीं सदी के अन्त तक भौगोलिक चिंतन के विकास की समीक्षा प्रस्तुत है। इस विषय पर हिन्दी में उपलब्ध साहित्य की आधारभूत कमी, और विधार्थियों एवं शोधाथिर्यों की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए इस पुस्तक में भौगोलिक चिंतन में द्वतीय विश्व युद्ध के बाद के पचास वर्षों में आए संकल्पनात्मक परिवर्तनों, विभिन्न वैचारिक क्रांतियों, और पिछले दो दशकों में सभी प्रकार की वैचारिक द्वैध्ताओं को नकारते हुए विषय को समाजविज्ञानिक समग्रता प्रदान करने वाले नवीनतम दृष्टिकोणों, तथा अधीनातन शोध् प्रवृत्तियों पर प्रस्तुत सविस्तार चर्चा इस पुस्तक की विशिष्ट पहचान है। यह पुस्तक ऑनर्स एवं स्नातकोत्तर स्तर के विद्यार्थियों तथा केन्द्रीय एवं लोक सेवा आयोगों की प्रतियोगात्मक परीक्षाओं के प्रत्याशियों के लिए अनिवार्य तथा सम्पूर्ण पाठ्यपुस्तक एवं सन्दर्भ ग्रंथ है।