हिन्दी भारतवर्ष की राजभाषा और राष्ट्रभाषा है। यह देश के लगभग 42 करोड़ नागरिकों की मातृभाषा तथा कश्मीर से कन्याकुमारी और असम से गुजरात तक बृहत्तर भारत में जनसामान्य की सम्पर्कभाषा है। देश के अन्यान्य हिस्सों में इसके उच्चारण, शब्द.प्रयोग, वाक्य.विन्यास, वर्तनी और व्याकरण में भरपूर विविधता और विकृतियाँ पाई जाती हैं। यह स्थिति हिन्दी भाषा के शुद्ध प्रयोग पर एक प्रश्न चिन्ह है।
आज शिक्षा, जनसंचार, व्यापार, पर्यटन, सिनेमा जैसे अनेक माध्यमों से हिन्दी पूरे देश और दुनिया में फैल रही है। क्षेत्रीय तथा विदेशी भाषाओं के शब्दों और शैलियों के अपमिश्रण के कारण हिन्दी का निजरूप उपेक्षित हो रहा है। इन परिस्थितियों में हिन्दी भाषा के मानक स्वरूप को सँजोना और विकसित करना अपने आप में एक चुनौती है। इसके प्रतिकार के लिए हालाँकि समाज के सभी वर्गों का योगदान अपेक्षित है, फिर भी हिन्दी भाषा के अध्येताओं और अध्यापकों को इसकी अस्मिता की रक्षा के लिए विशेष जि़म्मेदारी निभानी होगी। हिन्दी अध्यापकों और विद्यार्थियों की मौखिक और लिखित भाषा में शुद्धता और मानकता के विकास के उद्देश्य से ही इस पुस्तक का सृजन किया गया है।
प्रस्तुत पुस्तक की रचना शिक्षक शिक्षा के सभी डिप्लोमा, डिग्री और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमोंकृबी.एड., बी.एल.एड., डी.ई.टी.टी., डी.एड., एम.एड., एम.ए.कृएजुकेशन आदि के छात्राध्यापकों, कार्यरत हिन्दी शिक्षकों और हिन्दी शिक्षण विधियों को जानने के इच्छुक विद्यार्थियों के उपयोग हेतु लिखी गई है ताकि वे अपने विद्यार्थियों के आधारभूत भाषा.कौशलों में सुधार के लिए प्रेरित और सक्षम हो सकें। पुस्तक में हिन्दी भाषा के स्वरूप को सहज बोधगम्य बनाने और विद्यार्थियों तक उसके अन्तरण की प्रक्रिया का विवेचन किया गया है।
प्रस्तुत पुस्तक की वण्र्यसामग्री अनेक विश्वविद्यालयों के शिक्षक.प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों को ध्यान में रखकर चुनी गई है। यह पुस्तक अध्येताओं को हिन्दी के सामान्य स्वरूप, भाषा.अधिगत प्रक्रिया, आधारभूत व्याकरण, शिक्षण.नियोजन, शिक्षण.विधियों, मूल्यांकन प्रविधियों, क्रियात्मक अनुसन्धान इत्यादि से अवगत कराती है। साथ ही पुस्तक में आधुनिक हिन्दी, हिन्दी के विस्तार, प्रभाव, बदलते स्वरूप और सम्भावनाओं का भी उल्लेख है। यह पुस्तक हिन्दी के संरक्षण, शिक्षण और प्रसार में निश्चित रूप से उपयोगी सिद्ध होगी।